कलियुग
हमने सघन जँगलो के झुरमुठ से उगता सूरज देखा है!
मैने सफेद पोश नेताओ को काले कर्तब करते देखा है!!
मैने महानिकम्मे लोगो को जीरो से हीरो बनते देखा है!
जो होता है सही नही दिखे,पर अनदेखा होते देखा है!!
बेटी के होने वाले दामाद सास का नैनमट्का देखा है!
भाई-बहन के रिश्तो को वासना कलुषित होते देखा है!!
देवर-भाभी को भी हमने हँसते हम बिस्तर होते देखा है!
टूट गई सब मर्यादा,नई उम्र की नई फसल रोते देखा है!!
जीवन समबन्धो को जीने की एक अमिटअविरल रेखा है!
जिसने तोडा अभिशप्त हुआ स्वयं,औरौ को करते देखा है!!
सीता ने तोडी या फिर द्रौपदी ने,हश्र हुआ सबने देखा है!!
रावण तोडी अथवा दुर्योधन लँका-दहन, महाभारत देखा है!
मर्यादा पुरुषोत्तम राम से सीखो. मर्यादा की सीमा रेखा है!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट.कवि.साहित्यकार
202 नीरव निकुजँ,सिकँदरा,आगरा-282007
मो:9412443093