लक्ष्मी जी
रूप बदल कर घर मे कैसन आवै लछ्मी
तुम ना समझो कैसन रूठ जावै लछ्मी?
अपने- अपने कर्मो प्रतिफल देवै लछ्मी!
कभी भार्या कभी बेटी रुप आवै लछ्मी!!
सुख सौभाग्य और सँतोष दिलावै लछ्मी!
जाघर सुख सँतोष नही,ना सुहावै लछ्मी!!
प्रेम पँथ पर ही केवल चरण धरावै लछ्मी!
धन कुबैर को देख .नाय ललचावै लछ्मी!!
मन कौ भ्रम है,सुख सँतोष दिलावै लछ्मी!
जो चैन की नीद प्रैम सहित सुलावै लछ्मी!!
पकड सकौ बाकी बँहिया जो इतरावै लछ्मी!
तब ही चपल,चँचला,चतुर कहलावै लछ्मी?
या जग मै कौन बँ|ध सको बलखावै लछ्मी!
भाग्य परै तै कबँहू या ना टिक पावै लछ्मी!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,साहित्यकार
202 नीरव निकुजँ,सिकँदरा,आगरा-282007
मो:9412443093