आगाज़ भी रुसवाई, अंजाम भी रूसवाई
आगाज़ भी रुसवाई अंजाम भी रुसवाई
अकेले इश्क़ ने जग में ,कैसी आग लगाई
बेवजह ,बेबस हुये जाते हैं इसमे अच्छे भले ,
बेख़ौफ़ इस आग के दरिया ने ,तबाही मचाई।
शौक ए दिल की बात क्या करें हम तुमसे
हमें पत्थर में भी, तस्वीर ए महबूब नज़र आई।
नफ़ासत ,अदावत ,नज़ाकत सब इसमें है
मगर जाने क्यूं , फिर भी कर जाये बेवफाई।
माना हमने वो ,हाथ की लकीरों में न था
चीर कर हथेली हमने ,नयी लकीर थी बनाई।
सुरिंदर कौर