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10 Jun 2025 · 1 min read

आगाज़ भी रुसवाई, अंजाम भी रूसवाई

आगाज़ भी रुसवाई अंजाम भी रुसवाई
अकेले इश्क़ ने जग में ,कैसी आग लगाई

बेवजह ,बेबस हुये जाते हैं इसमे अच्छे भले ,
बेख़ौफ़ इस आग के दरिया ने ,तबाही मचाई।

शौक ए दिल की बात क्या करें हम तुमसे
हमें पत्थर में भी, तस्वीर ए महबूब नज़र आई।

नफ़ासत ,अदावत ,नज़ाकत सब इसमें है
मगर जाने क्यूं , फिर भी कर जाये बेवफाई।

माना हमने वो ,हाथ की लकीरों में न था
चीर कर हथेली हमने ,नयी लकीर थी बनाई।

सुरिंदर कौर

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