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10 Jun 2025 · 1 min read

अर्धांगिनी (त्याग, अधिकार और कर्तव्य)

मैं तुम्हारी अर्धांगिनी हूं।

अपने सपने त्यागे, तुम्हारे सपने सजाने को।

अपनी खुशियां त्यागी, तुम्हें खुश रखने को।

अपने शौक त्यागे, तुम्हारे शौक पूरे करने को।

अपना जीवन न्यौछावर किया, तुम्हारे जीवन में रंग भरने को।

त्याग दिया बाबुल का आंगन, तुम्हारे आंगन में खिलखिलाने को।

त्यागी है अपनी नींद, तुम्हें सुबह जल्दी उठने को।

अपनी खूबसूरती का त्याग किया, तुम्हें पिता बनाने को।

तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर आई हूं।

अग्नि को साक्षी मान तुम्हारी अर्धांगिनी बन गई हूं।

तुम्हारी सारी खुशियों पर हक है मेरा।

सुख दुख के साथी हैं हम तुम जीवन भर।

तुम्हारे हर दुख दर्द पर अधिकार है मेरा।

कल तक जो सिर्फ मेरा था,अब है तेरा मेरा।

मैं तुम्हारी अर्धांगिनी हूं।

तुम मेरे देवता समान पति मै गृह लक्ष्मी हूं।

अपने कर्तव्यों को निभाने आई हूं।

तुम्हारे जीवन को स्वर्ग बनाने आई हूं।

यही मेरा परम कर्तव्य है।

तुमने बनाया जो ईटों का मकान,उसे प्यार से घर बनाने आई हूं।

हर कदम पर तुम्हें सहारा देने,

तुम्हारे बेरंग जीवन को सतरंगी खुशियों से भरने आई हूं।

जब उम्र ढल जाएगी, बूढ़े हो जाएंगे हम तुम।

उस पल भी तुम्हारा दामन थाम लूंगी चलूंगी।

जीवन के आखिरी पड़ाव पर तुम्हारा साथ निभाने आई हूं।

तुम्हारी गृह लक्ष्मी अर्धांगिनी हूं मैं।

तुम्हारा हर दुख – दर्द – पीड़ा बांटने आई हूं ।

तुम्हारे जीवन के अधूरे हिस्से को पूरा करने,

मैं जीवन के बाद भी तुम्हारा साथ निभाना आई हूं।

स्वरचित मौलिक रचना
दिव्यांजली वर्मा अयोध्या उत्तर प्रदेश

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