गणपति से याचना
प्रात नमन गणपति करूँ,विनय करो स्वीकार।
दया दृष्टि रखना सदा,करना बहु उपकार।।
ज्ञान उचित मुझको मिले, बढ़े शब्द भण्डार।
छंद बद्ध रचना करूँ,लेकर जीवन सार।।
धर्म कर्म करके सदा, पाऊँ समुचित अर्थ ।
दया आपकी नित रहे, मिटें कष्ट सब व्यर्थ।।
जगहित के सत भाव से,सिंचित हों मम कर्म।
पंथ उचित ऐसा मिले,पालित हो सत धर्म।।
डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम