फिर भी वो मेरे हुजूर लगते हैं
सब कुछ जानते हुए भी,
वो अपने में ही मखमूर लगते हैं ,
हम कितना भी कह ले,
वो बस बदस्तूर लगते हैं ।
फिर भी वो मेरे हुजूर लगते हैं।।
मालूम है उन्हें भी मजबूरियां हमारी ,
बावजूद हम उन्हें नामंजूर लगते हैं,
कहने को तो सबसे नजदीक हैं हम उनके,
जाने क्यों महसूस होता है जैसे बहुत दूर लगते हैं।
फिर भी वो मेरे हुजूर लगते हैं।।
कभी कभी इतने खुश रहते हैं वो,
जैसे लड्डू मोतीचूर लगते हैं,
लेकिन जब मिजाज गरमाता है उनका,
तो प्रचंड तप्त भट्ठी तंदूर लगते हैं।
फिर भी वो मेरे हुजूर लगते हैं।।
विकास शुक्ल