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8 Jun 2025 · 4 min read

..जब शहाबुद्दीन से हुआ कल्याण सिंह का सामना

पत्रकारिता संस्मरण-5

कल्याण सिंह(२)

….जब शहाबुद्दीन से हुआ कल्याण का सामना

राम मंदिर आंदोलन पूरे उत्कर्ष पर था। विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी आमने सामने थी। विश्व हिंदू परिषद की कई शाखाएं श्री राम जन्म भूमि आंदोलन को धार दे रहीं थीं। जब राम जन्म भूमि का ताला खुला तो शहर में घुप सन्नाटा। उस वक्त तीन चार अखबार ही मेरठ में प्रमुख थे – प्रभात, हमारा युग, मेरठ समाचार, नवयुग और हिन्दू। तिथि थी 1 फरवरी 1986। जागरण का प्रकाशन 1984 में हो गया था। लेकिन खबर शाम चार बजे फैल गई थी। सबको इंतजार अखबार का था। सांध्य कालीन अखबारों के आते ही लूट मच गई। कहीं पर विजय उत्सव था। कहीं खामोशी। 1986 में ही मेरठ में दंगा हुआ था। विजय दिवस और काला दिवस को लेकर।
राम मंदिर आंदोलन के दौर में विहिप ने कई संगठन खड़े किए जैसे बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, युवा दुर्गा वाहिनी। भाजपा का युवा मोर्चा भी तभी बना। नाम था भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा ( भाजयुमो)। भारतीय जनता पार्टी का महिला मोर्चा भी उन्हीं दिनों था। अब ये सब संगठन हैं अवश्य लेकिन मुख्य पार्टी ही अब सब कुछ है। बजरंग दल गिने चुने लोग ही चला रहे हैं। विहिप के तमाम पुराने संगठनों का अब पता नहीं है। विहिप है अवश्य लेकिन अशोक सिंघल जी के बाद यह विशालकाय संगठन कालातीत हो गया है।
पहले बात। कल्याण सिंह की। राम मंदिर आंदोलन के समय दो प्रमुख हीरो थे। एक कल्याण सिंह। दूसरे सैयद शाहबुद्दीन। संयोग से दोनों के कार्यक्रम एक ही दिन मेरठ में लग गए। दोनों की सहारनपुर से लेकर मेरठ तक सभाएं। शाहबुद्दीन की सभा ईदगाह तो कल्याण सिंह की ब्रह्मपुरी। दोनों सर्किट हाउस आ जाएंगे। किसी को गुमान नहीं था। पहले सूचना आई कल्याण सिंह सर्किट हाउस आ रहे हैं। हम वहीं पहुंचे। थोड़ी देर बाद कल्याण सिंह भी पहुंच गए। कल्याण सिंह फ्रैश हुए। चाय पी। अपने कक्ष में। अचानक सैयद शाहबुद्दीन भी वहां पहुंच गए। उनकी भी वही अनिवार्यता थी जो कल्याण सिंह जी की थी। यानि फ्रैश होना था। आमने सामने के कक्ष में दो विपरीत ध्रुवीय नेता। प्रशासन की हालत खराब। संयोग देखिए। दोनों नेता एक साथ अपने कक्ष से भी निकले। आमना सामना हुआ। तनाव के बीच दोनों में ‘शिष्टाचार’ भेंट हुई। दुआ सलाम हुई। दो मिनट बात हुई। फिर दोनों अपनी अपनी सेना के बीच। बाहर नारेबाजी। अंदर शिष्टाचार भेंट। आज यह संयोग भी कहां देखने को मिलता है।
… अगर मैने सवाल पूछ लिए तो ?
संकेत मिल गए थे कि वक्त तेजी से बदल रहा है। पत्रकार, पत्रकारिता, परिवेश एक जैसा नहीं रहने वाला। राम मंदिर आंदोलन के बाद यह बड़ा परिवर्तन देखने को मिला। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बन चुके थे। सर्किट हाउस में प्रेस कांफ्रेंस। तभी किसी सवाल पर कल्याण सिंह
उखड़ गए। यह रौद्र रूप अप्रत्याशित था।
‘मान्यवर! मेरी संवैधानिक मजबूरी है कि मैं आपके प्रश्नों का उत्तर दूं। ऐसा न हो कि स्थिति पलट जाए। ऐसा समय न आ जाय कि आप सवाल ही न पूछ पाएं? अगर मैने आप से सवाल पूछ लिए तो आप जवाब नहीं दे पाओगे।’ इसके साथ ही प्रेस कांफ्रेंस बिना सवाल जवाब के खत्म हो गई। कल्याण सिंह की बातें वक्त के गाल पर कितनी फिट बैठी हैं। वही हो रहा है जो कल्याण सिंह ने कहा था।

…टिकैत को जेल भेजा, उन्हीं पर लेख लिखा
1986 में भारतीय किसान यूनियन और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का उदय अप्रत्याशित घटना थी। टिकैत ने राजनीतिक दलों के होश उड़ा दिए थे। आंदोलन पर आंदोलन। जन सैलाब। कल्याण सिंह दबने वालों में नहीं थे। लखनऊ में पंचायत की घोषणा हुई। टिकैत अरेस्ट कर लिए गए। टिकैत के निधन का वाकया सुनिए। हम टिकैत पर परिशिष्ट निकाल रहे थे। दो प्रमुख नेताओं से लेख लिखवाना चाहते थे। सोम पाल शास्त्री जी से बात हो गई थी।
मसला, कल्याण सिंह जी का था। मैने फोन किया..’आपसे टिकैत पर लेख लिखवाना चाहते हैं? क्या संभव हो पाएगा? ‘ कल्याण सिंह बोले- ‘लिख तो नहीं पाऊंगा। इमला बोल दूंगा। कलम डायरी है तुम्हारे पास?’
मैं मौका नहीं चूकना चाहता था। फिर क्या था..वो बोलते रहे। मैं लिखता रहा। उनके इमला बोलने की शक्ति मुझे पता थी। लेख का अंत उन्होंने अपने गीत की ही पंक्तियों से किया। लेख पूरा होने पर मैने कहा..बाबूजी अपने वो प्रसंग तो बताया नहीं, जब टिकैत को गिरफ्तार कराया?
अब कल्याण सिंह जी का जवाब सुनिए..’.वो परिस्थितियोंवश निर्णय था। वह किसानों के सम्मानित और हमारे आदरणीय किसान नेता थे। हमारी संस्कृति दिवंगत के खिलाफ बोलने की अनुमति नहीं देती।’ लेकिन आज तो इसके उलट ही हो रहा है। सब जगह।

कुछ फैसले गलत भी हुए
कल्याण सिंह के जीवन में राजनीति का कृष्ण पक्ष भी आया। राम मंदिर का हीरो एक दिन बागी हो गया। 1999 आते आते कल्याण सिंह पार्टी के अंदर बाहर खींचतान से जूझने लगे थे। अटल बिहारी वाजपेयी से बगावत। त्यागपत्र। पार्टी से अलग होना। राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन। भाजपा से निष्कासन।

मुलायम से दोस्ती और वो बगावत

कल्याण सिंह और मुलायम सिंह परस्पर बहुत अच्छे मित्र थे। तनाव के दौर में भी उनकी बातें होती थीं। यह बात अलग रही कि एक राम मंदिर आंदोलन का जननायक बना तो दूसरा विलेन। लेकिन रिश्ते मजबूत थे। कल्याण पर मुसीबत आई तो मुलायम सिंह ने साथ दिया। मुलायम सिंह यादव से मेल हुआ। वह उनके सहयोग से एटा से सांसद बने। यही नहीं,
फिर भाजपा में वापसी भी की। आदि आदि। कहा जाता है, अटल जी ने ही उनकी भाजपा में वापसी कराई।
एक शिखर पुरुष के भी फैसले गलत हो सकते हैं। ऐसा ही कल्याण सिंह जी के भी साथ हुआ। राजनीति की मुख्य धारा से वह क्या अलग हुए कि दृश्य परिदृश्य ही बदल गया। कुछ फैसले इतिहास बदल देते हैं। कुछ इतिहास को जख्म दे जाते हैं। समय लौट कर नहीं आता। कल्याण सिंह जी के साथ लंबा समय बीता। काले चमड़े के बैग से लेकर लाल कार्पेट तक मैने उनका हर दौर देखा। इसलिए कह सकता हूं, समय बहुत बलवान होता है।

सूर्यकांत

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