दिल में आइए
न मंदिर बनाइये न मस्जिद बनाइये
रहता ख़ुदा है दिल में, दिल में आइए।
ताकतवर हैं तो ताकत दिखाइए
नदी की एक धार प्यासों में लाइए।
लबरेज़ हूँ हिम्मत से साथ चलने के लिए
टूटे हुए दिल के न टुकड़ों में जाइए।
अपने हिस्से का बोझ खुद ही उठाना है
हंसिये नही, चलिए हाथ में उठाइए।
चंद अमीरों को सब कुछ न चला जाये
जो गरीब के है, हक में दिलाइये।
छज्जे पे आये मायूस पंछी ने कहा
कटोरे में नही जल नदी तालों में चाहिए।
अब सबको चुभने लगी आपकी बातें
सुधार जरा अपने लहज़े में लाइए।
देवगणों की ज़िरह में दर्द है धरा का
देवेंद्र अप्सराओं की न बातों में जाइए।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’