बलवानों की चढी़ हुई, भौंहें नित जिन्हें डरातीं हों।
बलवानों की चढी़ हुई, भौंहें नित जिन्हें डरातीं हों।
अत्याचारों पर तख़्तों को, जहाँ मौत ना आतीं हों।
वहाँ युद्ध या सत्ता से टकरा जाना ही न्याय हेतु है।
न्याय कुर्सियाँ और जहाँ पर सत्ताऐं बिक जातीं हों।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’