तपा -तपा कर मन को, मन की, पीरों को पिघलाने निकला।
तपा -तपा कर मन को, मन की, पीरों को पिघलाने निकला।
मैं अपने ही अश्कों से, अपने तन को नहलाने निकला।
यादों के कोलाहल से जब, मन के सन्नाटे सहमे।
पढ़कर तेरी चैट पुरानी, इस दिल को बहलाने निकला।।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’