एक सदी का मन घबराए
गीत
एक सदी का, मन घबराए।।
एक सदी के, लब मुस्काए।।
नापा किसने सारा अम्बर
कितना है गहरा ये सागर
पंख पखेरू ने फैलाए
मन की मछली डूबी जाए
एक सदी आंसू छलकाए
एक सदी के लब मुस्काए।।
पनघट पनघट, घट है रीता
प्यासी सरयू, जैसी सीता
झुके हुए राजीव नयन ये,
देख रहे आंसू क्यों आए..?
एक सदी ने सबक सिखाए
एक सदी के लब मुस्काए!
मन का अपने, धर्म कहां है
पूछे गीता, कर्म कहां है
देखा जो द्वापर का दर्पण
अपनों से अपने टकराए
एक सदी ने हक़ जतलाए।।
एक सदी के लब मुस्काए
कलियुग की कुछ, बात नहीं है
जागे दिन भर, रात नहीं है
अधरों पर है, सघन उदासी
जैसे चातक, बदरा प्यासी
उड़ता आंचल, चली हवाएं
दिशाहीन हैं सभी दिशाएं
एक सदी का मन भरमाए
एक सदी के, लब मुस्काए।।
सूर्यकांत