"गाँव की ओर"
“गाँव की ओर”
सारे टेंशन छोड़
हिम्मत समेट
मन को कर सजोर
चलो गाँव की ओर।
सन्तोष ही सम्पत्ति जहाँ
लालच की नहीं छाँव
दोपहरी के बाद सांझ में
लोगों के होते जुड़ाव
फिर प्रेम का गूंजता शोर
चलो गाँव की ओर।
“गाँव की ओर”
सारे टेंशन छोड़
हिम्मत समेट
मन को कर सजोर
चलो गाँव की ओर।
सन्तोष ही सम्पत्ति जहाँ
लालच की नहीं छाँव
दोपहरी के बाद सांझ में
लोगों के होते जुड़ाव
फिर प्रेम का गूंजता शोर
चलो गाँव की ओर।