एक छोटा-सा प्रश्न
एक छोटा-सा प्रश्न।
आओ विचार करें।
एक छोटे-से प्रश्न का।
हम सृजनकर्ता हैं।
किसके?
कविता, कहानी, लेख, संस्मरण की!
गद्य-पद्य की!
रस-अलंकार, छंद की!
गीत, गजल किसी पंत की!
एक छोटा-सा प्रश्न।
हम शिल्पकार हैं।
किसके?
शब्दों के!
शब्द-शक्ति अभिव्यंजना की!
अपनी-अपनी रचना की!
अपने सृजन के सपनों की!
उत्तर मिला।
नहीं।
फिर एक छोटा-सा प्रश्न।
हम कौन हैं?
हमारी पहचान क्या है?
पूछिए स्वयं से।
उत्तर मिला।
हम शिक्षक हैं।
हमारी पहचान विद्यालय और बच्चें हैं।
फिर एक छोटा-सा प्रश्न।
क्या वाकई हम शिक्षक हैं?
इस बार दिल थम सा गया।
थोड़ा सकुचाया।
मन हीं मन फुसफुसाया।
क्या हम वाकई शिक्षक हैं?
या शिक्षक की नौकरी कर रहे हैं?
कोई जवाब न आया।
स्वयं में सकुचाया।
फिर स्वत: एक छोटा-सा प्रश्न उभर आया।
कैसे सृजनकार हो भाई?
क्या शिल्प देना है और क्या दे रहे हो?
क्या कुछ भूल कर रहे हो?
आधार शिला रखी नहीं और दीवार खींच रहे हो।
स्याही स्याह सी होने लगी।
हृदय रोने लगा।
हम कल्पनाओं में नहीं रहेंगे।
बच्चों के सृजनहार है, उन्हें गढ़ेंगे।
फिर हमारी रचनाओं में धार होगी।
लेखन में सत्य की बहार होगी।
बच्चों से हमारी पहचान होगी।
सृजन की नयी उड़ान होगी।
हम गर्व से कह पाएंगे।
हम सृजनकार हैं, शिल्पकार हैं, और मुस्कराएंगे।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978