मां पर दोहे
मां
देखे हमने मात के, कितने अंकित रूप।
आंखों में थी चांदनी, अंतस उजली धूप।।
2
लाखों कांटे चीटियां, सहती पीर अपार।
तब जन्मे हम गर्भ से, मां धरती का हार।।
3
नजर लगे ना रूप को, काला टीका भाल।
ऐसे ही चलती रही, अपनी नैया ताल।।
4
मां गजलों का काफिया, मुक्तक सी मुस्कान।
छंदों में छन-छन करे, दोहे दुग्ध समान।।
5
होता है दुख देखकर, अपनी मां लाचार।
गिर जाएगी एक दिन, बिजली मेरे यार।।
6
देखे दर्पण बेटियां, मां का प्रतिपल रूप।
बेटे भी चढ़ते गए, जैसे सूरज धूप।।
7
आई फिर दुल्हन परी, गुणित हुआ परिवार।
दादी के फिर अंक में, पूनम यह संसार।।
सूर्यकांत