अड़िल्ल छंद
अड़िल्ल छंद
जीवन की रसधार तुम्हीं से
जीवन की पतवार तुम्हीं से
आ जाओ तुम मन के आंगन
तुम बिन लगता सूखा सावन
सांसों का यह मोल न जाना
अधरों का भी बोल न जाना
तुम से जीवन, तुम उजियारा
तुम से लगता यह जग प्यारा।।
मन मंदिर की आस तुम्हीं से
मन मंदिर की प्यास तुम्हीं से
मिल जाए जब दर्श तुम्हारा
खिल जाए तब दर्श हमारा।।
जग का है आधार तुम्हीं से
जग की मूरत, प्यार तुम्हीं से
राधे-राधे, गिरधर नागर
मैं नदिया हूं, तू है सागर।।
सूर्यकांत