"ईश्वर एक घराती" भजन का पद
साधो !
ये जग छद्म-वराती।
ईर्ष्या की वेदी में छल की,आहुति होम लगाती।
षडविकार के छै फेरे ले,श्वास-वधू इठलाती।
सप्तम फेरा लिए कपट का,बाम अंग हो जाती।
मुँह-देखे की आवभगत कर,मंद-मंद मुस्काती।
भ्रष्ट-नीतियों का दहेज ले,घर आकर इतराती।
भरी वरात कपट की जिसमें “ईश्वर” एक घराती।
साधो !
ये जग छद्म-वराती।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी