Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 May 2025 · 1 min read

"ईश्वर एक घराती" भजन का पद

साधो !
ये जग छद्म-वराती।

ईर्ष्या की वेदी में छल की,आहुति होम लगाती।
षडविकार के छै फेरे ले,श्वास-वधू इठलाती।

सप्तम फेरा लिए कपट का,बाम अंग हो जाती।
मुँह-देखे की आवभगत कर,मंद-मंद मुस्काती।

भ्रष्ट-नीतियों का दहेज ले,घर आकर इतराती।
भरी वरात कपट की जिसमें “ईश्वर” एक घराती।

साधो !
ये जग छद्म-वराती।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी

Loading...