धरणी विधान
///धरणी विधान///
सुमन पल्लवों से पूरित धरणी,
सर्व-द धरा के सुफल विधान।
विटप विटप भ्रमरों का अंजन,
करती भू मृदुल दृगो से अनजान।।
परिपूरित खग मृग वृंद वाटिका,
उन पर बारिद शुचि छत्र समान।
प्रेम प्रणय ले घुमड़ आते हैं अभ्र,
गाते रहते दे देकर पत्तों पर तान।।
द्रुत गति से उग आते हैं पुष्प,
दौड़े आते अलि करते गान।
रवि किरणों से मद ले उड़ते वे,
धर शैल परों के प्रसून अजान।।
पलक तटों से करती है छप छप,
ले लेकर मुकुल मदिरा का पान।
सुरभि पूरित मणि कुट्टित तन पर,
कर देते वे अपना सर्वस्व प्रदान।।
बना फलकों से अवनी मंदिर में,
भर भरकर कलश करते प्रयाण।
दे देते हैं अपना नवरस सहज ही,
पर नहीं उन्हें इस पर अभिमान ।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)