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27 Apr 2025 · 1 min read

अगली बार

अगली बार
जब हम मिलेंगे
थोड़े मटमैले दिखेंगे
यादों से सने हुए
पश्चाताप में डूबे हुए नहाए हुए

अगली बार
जब हम मिलेंगे
हंसते हुए रो पड़ेंगे
टूट पड़ेगा यादों का बांध
जो थे हम मटमैले धूल कर निखर जाएंगे

अगली बार
जब हम मिलेंगे
नहीं निकलेगा मुँह से कोई शब्द
न ही बोल पाएंगे एक वाक्य भी
सारा आक्रोश पड़ जायेगा शिथिल

अगली बार
जब हम मिलेंगे
बैठे रहेंगे घण्टों एक साथ
फिर भी एक दूसरे से होंगे कोसों दूर
मीलों की यात्रा के रह जाएंगे निशां

अगली बार
जब हम मिलेंगे
गोधूलि की बेला होगी
सूर्य मद्धिम हो जाएगा
चिड़ियों की चहचहाहट में
गुम हो जायेगा
हमारे हिस्से का शोर

अगली बार
जब हम मिलेंगे
दिनकर प्रभामंडल में हो जायेगा
आच्छादित मखमली धूप
हमारे अंतर्मन को कर देगी
परिष्कृत

अगली बार
जब हम मिलेंगे
फिर से तरुण हो जाएंगे

✍🏻 शुभम आनंद मनमीत

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