तुम जगत जननी
[20/04, 5:13 am] dr rk sonwane: ///तुम जगत जननी///एक
तुमसे ही पोषित सकल संसार,
तुम हो अमित सुधा का सार।
वंदन करते हैं सब देव तुम्हारा,
पूजन करते हैं साधक बारंबार।।१।।
तुममें भरी प्रीत अपार,
तुम ही हो गंग जल धार।
सज्जनों की वाणी तुम ही,
तुम झंकृत वीणा के तार।।२।।
भ्रमरों के गुंजन का स्वर तुम,
तुम पुष्पों के सुदर्शन हार।
जगत जननी शिव-हृदय-कमल,
तुम निर्मल मणि मुक्तालंकार।।३।।
तुम मलय की सुरभित वाती ,
तुम कनु बंशी की मधुर तान।
वृंत करील कुंजों के पल्लव,
तुम ही मानवता का आव्हान।।४।।
तुम प्रेम उदित अनुदित संसार,
जीवन ज्योति का तुमसे संचार।
कलरव करते हैं खग मृग वृंद,
तुम ही ज्योति कलश उपहार।।५।।
सुमधुर स्वादों का संचित रस ,
तुम सोम वल्ली का सार अमित।
ब्रह्मांड वेध प्रकाश नवल तुम,
तुम हो अखिल प्राणों का गीत।।६।।
दृग बसन सत्य प्रेम वरण,
न्याय पूरित श्रम स्वेद हार।
शशि तारक ग्रह मंडल सब,
तुम ही हो जीवन का सार।।७।।
अनहद कलरव संगीत मधुर,
उठते हैं तुमसे ही शक्ति पाकर।
अति पवित्र उज्जवल दर्शन वे,
शरणागत मिलते तुमसे जाकर।।८।।
आगे…
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट(मध्य प्रदेश)
[20/04, 6:36 am] dr rk sonwane: ///तुम जगत जननी///दो
सुगंध गंध अरु नीरानंद हो,
करुण व्यथा का क्रंदन तुम।
मूक प्राणों के मुखरित स्वर ,
चिर संचित आशा वंदन तुम।।९।।
सुस्पर्श तन मन जीवन का,
होता है तेरा ही शुचि स्पर्श।
जो तेरे चरण शरण में माता,
उसका कैसे होगा अपकर्ष।।१०।।
अब नवल उषा का सत्कार,
नहीं करेंगे यह बासी फूल।
चाहते हम आशीष तुम्हारा,
और चाहते चरणों की धूल।।११।।
चरणों की धूलि है ज्योति कण,
चरण तुम्हारे हैं ज्योति कलश।
पाकर जिनको पाषाण हृदय में,
उत्स भरता मधुता का मानस।।१२।।
नवल उषा का करने सत्कार,
करें मां के चरणों का अर्चन।
उठो विश्व के चक्षु केंद्र तुम,
करें निरंतर श्रम शौर्य अर्पण।।१३।।
जगत जननी के हृदय का सत्कार,
नहीं इसके उपयुक्त कोई अलंकार।
अर्पण कर सको तो आज बनाओ,
अपने ही सकल श्रम शौर्य का हार।।१४।।
है विनय मां तुमसे बारंबार,
अर्पित तुम्हें श्रम शौर्य उपहार।
मेरी रति गति मति सब तुम ही,
यही तुम्हारी आशा का श्रृंगार।।१५।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)