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18 Apr 2025 · 1 min read

ऊषा

///उषा///

नील गगन में रवि उदित होता,
ज्योति जगा हरने तम की कारा को।
प्राची से उषा आती हम तक,
करने वितरित गंगा की धारा को।।

नभो मंडल में आच्छादित तम तब,
बसा न सकेगा यहां अपना बसेरा।
मानव के जीवन में यह ज्योति,
स्थापित हो बने तेजोवलय का घेरा।।

इस स्फुरणा का प्रेरण सुन हम,
जाग्रत हो छोड़ उठें शयन शैय्या।
मधुमय जल धारा में सरिता की,
विचरण करती रहे जीवन नैय्या।।

ज्योति मग्न कण-कण प्रकृति का,
सत्य न्याय भरा हो मानव जीवन।
अंशुरूप प्रेम मधु का सुधापान कर,
रसमय अमृत फल देते द्रुमदल वन।।

मधुभावों से पोषित विज्ञान ज्ञान का,
हमारे मन मानस में हो शुचि संचार।
कितना रक्षित सुखमय होगा संसार,
उज्जवल भविष्य पाए हर परिवार।।

स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)

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