Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Apr 2025 · 1 min read

रूखसत किया था मैंने

उस को रूख़सत तो किया था खुद मैंने।
ज़हर अपने हाथों से पिया था ख़ुद मैंने।

सीने में सांस की तरह रवां है वो आज भी
नाम उसके बज रहा धड़कन का साज़ भी

हर आहट पे ये लगे ,शायद वो लौट आए
बिखरी हुई जुल्फें,एक बार तो सुलझाए।

हर सिलसिले को वो तोड़ कर गया है ऐसे
इक उम्र से रख रहे थे हम मरासिम कैसे

छोड़ खुद को वो मुझे साथ अपने ले गया
जाते-जाते वो मुझे अश्क निशानी दे गया

सुरिंदर कौर

Loading...