निर्वाण
फरेब की दुनिया में, क्या फरेबी बनूँ मैं।
या ये कारवां छोड़, अब अकेला चलूँ मैं।
काबिल नहीं मैं जहाँ के, क्या अब काबिल बनूँ मैं।
न मिलने की तमन्ना है गैर से, क्या खुद से मिलूँ मैं।
कश्मकश की दीवार भेद, अब अकेला बढ़ चला मैं।
था अकेला भीड़ में अबतक, अब हूं खुद से मिला मैं।
अब हूं खुद से…..
श्याम सांवरा……