रूह
रूह
****
भटकती रूह को
सुकून के
घने साये में देखकर
शांति के
सुखद आगोश में
महसूस कर
भी
हार जाता है
दिल
यूँ ही सँवारते,बनाते
जीवन के
भीड़ भरे
निरर्थक चौराहों को
सार्थक बनाते-बनाते।
–अनिल कुमार मिश्र
रूह
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भटकती रूह को
सुकून के
घने साये में देखकर
शांति के
सुखद आगोश में
महसूस कर
भी
हार जाता है
दिल
यूँ ही सँवारते,बनाते
जीवन के
भीड़ भरे
निरर्थक चौराहों को
सार्थक बनाते-बनाते।
–अनिल कुमार मिश्र