बढते कदम कभी ना रोको
बढते कदम कभी ना रोको
निकल पड़े गर मंजिल पर
कांटे मग में आएं कहीं भी
चलते रहना मंजिल पर
जीवन अथक साधना है ये
रोज परखता रहता है
ऐसे ही कर्तव्यों से तो
नित-नव रोज निखरता है
प्रण अपना मजबूत रहे तो
हर मुश्किल आसां होगी
कोई ना रोड़ा बन पाएगा
हर मंजिल आसां होगी
……✍️ अरविंद कुमार गिरि