Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
2 Apr 2025 · 1 min read

बेटी

///बेटी///

बेटी जगत जननी का विस्तार है,
परा शक्ति का धर्मधरा अवतार है।
जब जब घिर आई घटा संकट की,
तूने ही मानवता को लगाया पार है।।

सृजन प्रकृति का रचना विधाता की,
ढोती मानवता संचालन का भार है।
कष्ट कंटकों से भरे इस जीवन में,
तू स्नेहमयी प्रेमसृष्टि प्राण संचार है।।

बिनु बेटी प्रकृति सारी असार।
बिनु नारी पुरुष तू प्रकृति भार।।
दे पुरुष को श्रेय सकल उदात्त।
करुणाकरी अचल प्रेम संजात।।

निर्दयता सहती सकल,
फिर भी बांधे रखती मानवता अविकल।
संचार संस्कृति का तुझसे,
तुम साधक जीवन करती साध्य सफल।।

स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)

Loading...