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24 Mar 2025 · 1 min read

लक्ष्य अभिप्रेत

///लक्ष्य अभिप्रेत///

चलते रहो चलते रहो,
चलना निरंतर लक्ष्य को,
मानव को यही तो अभिप्रेत है।
उसर पड़े रहते खेत में,
पुरुषार्थ ही रचेगा उत्कर्ष,
क्या यह दृष्टि नहीं समवेत है।।

हिंसक पशु पगलाये सक्रिय,
श्वान हों व्याघ्र हों या भेड़िए,
सदा रहो सन्नद्ध शांति आदेश है।
हर तृण कण हुआ विष,
ऐसा कभी भी न सोचिए,
यही तो धरावेश का संदेश है।।

पीत प्रपंचकों का लालच छोड़,
बन अमृत्व का संवेदना वाहक,
लें धरें संकल्प यही साध्यशेषहै।
कोख में पलता है अगर सगर,
भवितव्य भागीरथी की संभावना,
यही जगत में अभिशेष अन्वेष है।।

स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)

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