प्यार की दास्तां

आओ सुनाएं एक कहानी,
प्यार की है दास्तां पुरानी।
आँखों में जो लाये पानी,
प्यार की ये दास्तां पुरानी।
गौर वर्ण वह सुन्दर लड़की,
कॉलेज में पढ़ाती थी।
सुन्दर उसके नयन नक्श थे,
सबके दिल को भाती थी।
फुर्सत के पल कॉलेज के ही,
पार्क में बैठा करती थी।
वहीं बैठकर सब बच्चों पर,
नज़र भी रखा करती थी।
देखा उसने कुछ बच्चों को,
कैसे-कैसे मेल कर रहे।
पढ़ाई-लिखाई छोड़ वो दिन भर,
लैला-मजनूं खेल कर रहे।
पास जाकर जड़ा तमाचा,
जोर की फिर एक डांट लगाई।
छोड़ पढ़ाई करते क्या हो,
लज्जा तुमको जरा ना आई।
बच्चे चुप से निकल गए,
ली अपनी-अपनी क्लास।
अध्यापिका ने फ़र्ज़ निभाकर,
चैन की ली अब साँस।
पर कुछ लड़कियों को उसकी,
ये डाँट पसंद न आई।
अगले दिन ही उन सबने,
टीचर को बातें सुनाई।
हो तुम इतनी सुन्दर पर,
कोई ना तुम्हारे जीवन में।
हम लड़कियों से ईर्ष्या अब
रखती हो तुम अपने मन में।
तुम क्या जानो प्रेम की भाषा,
तुम तो स्वयं अकेली हो।
खड़ूस स्वभाव से भी लगती हो,
किसी की तुम ना सहेली हो।
हँसने लगी वो टीचर बोली,
आओ सुनाएं एक कहानी।
एक था पागल सा लड़का,
और लड़की थी उसकी दीवानी।
थी अनाथ वो एक अभागी,
गाकर पेट वो भरती थी।
अंधी थी वो लड़की जन्म से,
मामा संग वो रहती थी।
गीत उसका सुन एक लड़का,
प्रेम में उसके पागल हुआ।
मासूम सी भोली सूरत पर,
दिल भी उसका घायल हुआ।
हर दिन भीड़ में उस लड़की के
गीत सुना वो करता था।
खोज-खबर ली उस लड़की की
सब कुछ पता वो करता था।
एक दिन हिम्मत कर उसने,
लड़की समक्ष इजहार किया।
लड़की ने भी प्रथम प्रेम को,
दिल से ही स्वीकार किया।
लड़की अक्सर गीत सुनाकर,
उसको लुभाया करती थी।
लड़का उसे देखता एकटक,
इतनी भाया करती थी।
अगले ही दिन लड़के ने,
फिर योजना एक बनाई।
क्यों ना शादी कर लूं मैं,
उसे बना लूँ अपनी लुगाई।
उससे पहले वो लड़की को,
एक डॉक्टर के पास ले गया।
मासूम सी उस गरीब को,
प्यारी सी एक आस दे गया।
लड़का था धनवान बड़ा,
डॉक्टर से बात बता डाली।
ऑपरेशन से ठीक हो सके,
ऐसी उम्मीद जगा डाली।
लड़की की खुशी का अब तो,
कोई ठिकाना नही रहा।
अपने प्यार को देख सकेगी,
वो अनजाना नही रहा।
पर थी एक परेशानी,
वो नेत्र कहाँ से लायेगा।
इतनी जल्दी कहाँ मिले,
जो जीवन ज्योति जगाएगा।
किस्मत ने उम्मीद जगा दी,
एक सड़क दुर्घटना में।
मिल गया उसको शख्स,
उसी के समक्ष हुई इस घटना में।
उसने मुड़कर भी ना देखा,
कौन वहाँ पर मरा पड़ा है।
या है पड़ा जीवित कोई,
या कि कोई आधमरा पड़ा है।
फिर एकक्षण में ख्याल आया,
क्यों न इसे हॉस्पिटल ले जाऊँ।
अगर व्यक्ति ये मर जाये,
तो नेत्र भी इसके ले आऊँ।
अपनी प्रेयसी को आँखे देकर,
प्यार को साबित कर जाऊंगा।
फिर उसको दुल्हनियाँ बनाकर,
अपने घर मैं ले आऊँगा।
हॉस्पिटल में उसे पहुँचाया,
मृतक होने की पुष्टि हुई।
नेत्र-ज्योति अब मिलेगी उसको,
ईश्वर की भी दृष्टि हुई।
दौड़कर वो पास गया,
लड़की को खबर सुना डाली
आज ही तुमको मिलेंगी आँखे,
ऐसी बात बता डाली।
लड़की और उसके मामा को,
हॉस्पिटल वो ले आया,
सफल हुआ आपरेशन उसका,
इतनी खुशियाँ दे आया।
लड़की बोली सुनो डॉक्टर जी,
पहले उसे दिखाओ ना।
जिसने मुझे दी इतनी खुशी,
तुम उसे सामने लाओ ना।
डॉक्टर उसे लेकर आया,
वो मुर्दाघर में पड़ा हुआ था।
सड़क दुर्घटना में भी मरकर,
जिद पर अपनी अड़ा हुआ था।
डॉक्टर बोला यही है वो,
जो सारा खर्च उठाया है।
खुद तो चला गया पर तुमको,
नेत्र-ज्योति लौटाया है।
लड़की बोली झूठ है ये सब,
अब तक था वो साथ मेरे।
ऑपरेशन तक साथ रहा,
और पकड़े भी था हाथ मेरे।
गौरवर्ण वो सुन्दर दिखता,
चेहरे पर था रक्त नही।
आज बनूंगी उसकी दुल्हनियाँ,
मैं कोई अभिशप्त नही।
डॉक्टर आश्चर्यचकित हो बोला,
ऑपरेशन तो अभी हुआ है।
इससे पहले तुमने कैसे,
उसे यहाँ पर देख लिया है।
क्या तुमने उसके अतिरिक्त,
किसी और को भी पहचाना है?
बोलो जरा तुम्हारे पालक
कौन यहाँ तेरे मामा है?
लड़की ना पहचान सकी,
जिसने बचपन से पाला था।
हुई अनाथ थी जब से वो,
मामा ने उसे सम्भाला था।
फिर बोला डॉक्टर की सुन लो,
लाश न जाने कहाँ से आई।
मैं था उसका परम् मित्र तो,
मैंने तुम्हें खबर भिजवाई।
लड़की थी स्तब्ध और फिर
जोर-जोर से वो चिल्लाई।
मरकर भी मेरे जीवन में,
जाने क्यों फिर ज्योति जगाई।
ऐसे नेत्र का क्या ही करूँ,
जब प्यार ही मेरा चला गया।
मेरी किस्मत के हाथों,
मासूम बिचारा छला गया।
कहते-कहते टीचर रोई,
दर्दभरी ये कहानी थी।
बच्चों ने भी रोकर पूछा,
कहाँ वो लड़की दीवानी थी।
टीचर बोली सामने देखो,
मैं ही वो अंधी दीवानी हूँ।
मर गया मेरा प्रेम मगर,
मैं आज भी उसकी रानी हूँ।
@स्वरचित व मौलिक
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।