मां तब की और मां अब की(अभिलेश श्रीभारती)

✨ मां तब की और मां अब की ✨
जा मां थी अनपढ़, पर ज्ञान भंडार,
संस्कारों का देती थीं वो उपहार।
ममता से हर घाव मिटाती,
सपनों की सच्चाई बताती ।
गोद में जिसने झूला झुलाया,
संघर्षों का पाठ पढ़ाया।
बेटे को डॉक्टर बना दिया,
बेटी को अफसर सजा दिया।
पर मां हैं अब पढ़ी-लिखी ज्ञानी,
तो बच्चों की राह कैसे हुई बेगानी।
किताबें छूटीं, संस्कार ऐसे बिखरे,
मोबाइल की चमक में, चेहरा फेसबुक पर निखरें।
जहां कलम से भविष्य रचते थे,
अब स्क्रीन पर डूबे रहते हैं।
टेक्नोलॉजी की इस दुनिया में,
अब मोबाइल से ट्यूशन पढ़ते हैं
पहले मां लोरी सुनाती थी,
संस्कारों से राह सजाती थी।
अब व्हाट्सऐप पर व्यस्त पड़ी,
बच्चे की दुनिया कही अलग खड़ी।
मां फिर से वह दीप जलाए,
संस्कारों की लौ बढ़ाए।
शिक्षा में गर संग मर्यादा हो,
तो फिर हर सपना साकार हो।
नयी पीढ़ी फिर ऊंचा उठे,
संस्कारों की नींव जमे।
ज्ञान के साथ परंपरा संग जुड़े,
तभी ये जग रोशन बने।
रचना:
~अभिलेश श्रीभारती ~