31) धन-संपत्ति (राधेश्यामी छंद)*
धन-संपत्ति (राधेश्यामी छंद)
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1)
धन की ताकत को पहचानो, धन सभी सुखों का दाता है।
धन से बनता है जग सुंदर, यह धन ऐश्वर्य-प्रदाता है।।
2)
धन से होते हैं पूर्ण कार्य, सब धर्म-कथाऍं चलती हैं।
धन से ही भंडारे भरते, गौशालाऍं सब पलती हैं।।
3)
धन से जब सात्विक कार्य हुए, धन जन-कल्याणी कहलाया।
जीवन को ऊर्ध्वमुखी करके, ऊॅंचाई तक यह ले आया।।
4)
दुष्टों के हाथों में आकर, धन अपसंस्कृति को गाता है।
धन का स्वरूप दूषित होकर, मदिरा में बह-बह जाता है।।
5)
धन विकृत होकर जीवन में, आडंबर-भाव जगाता है।
औरों को शान दिखाना बस, धन का मकसद रह जाता है।।
6)
धन वही श्रेष्ठ है जो आकर, मन में विनम्रता लाता है।
धन वह शुभदाता है केवल, जो काम जगत के आता है।।
7)
धनवान रहो लेकिन कड़वा, निर्धन से मत व्यवहार करो।
धन दिन-दो दिन की माया है, यह तथ्य सहज स्वीकार करो।।
8)
ईश्वर ने जो धन दिया हमें, ईश्वर की एक अमानत है।
किस्मत से जो धन आया है, उसका अभिनंदन स्वागत है।।
9)
धन सोचो किसके साथ गया, धन यहीं धरा रह जाता है।
धन से होता सद्कार्य जहॉं, वह शिलालेख कहलाता है।।
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रचयिता: रवि प्रकाश