कि चुभते फूल कांटों से, और शीतलता जलाती है।

कि चुभते फूल कांटों से, और शीतलता जलाती है।
खुशी मिलती नहीं कहीं, अब तो तन्हाई ही भाती है।
हाथ रक्त रंजित हो, और खंजर दामन में सहेजे हो ।
भरोसा किसपर करे सांवरे, जहाँ आशियां अपने जलाते हो।
कि माथे शिकन न दिखती, नैनन शर्म न टिकती।
जुबां पे क्षमा तो बसती है, कि जैसे एहसान जताते है।
श्याम सांवरा…..