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25 Feb 2025 · 1 min read

गजल

जो प्रेम के उस लेख को लिखवा रहा|
होके शगुफ्ता यार वो मिटवा रहा |

क्यों बेरहम रानाइयाँ देखा किये |
यूं बेवफा से आज वो मिलवा रहा |

कल प्यार में दीवानगी देखी गयी |
क्यूँ बंदगी से अब भला शिकवा रहा |

तो खुशनुमा वह यार है मेरा बड़ा |
जो तोहफे मैंने दिये गिनवा रहा |

ये जिंदगी भी रूठती है बिन वजह|
ये “प्रेम” जग में खेल यूँ खिलवा रहा |
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम

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