गजल

जो प्रेम के उस लेख को लिखवा रहा|
होके शगुफ्ता यार वो मिटवा रहा |
क्यों बेरहम रानाइयाँ देखा किये |
यूं बेवफा से आज वो मिलवा रहा |
कल प्यार में दीवानगी देखी गयी |
क्यूँ बंदगी से अब भला शिकवा रहा |
तो खुशनुमा वह यार है मेरा बड़ा |
जो तोहफे मैंने दिये गिनवा रहा |
ये जिंदगी भी रूठती है बिन वजह|
ये “प्रेम” जग में खेल यूँ खिलवा रहा |
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम