मायड़ भासा मोवणी, काळजियै री कोर।

मायड़ भासा मोवणी, काळजियै री कोर।
रोम रोम में रम रही , दाय न आवै ओर।।
आखर जिणरां ओपता, कंठै करै किळोळ।
जबरा लागै जगत में, मां भासा रा बोल।।
मायड़ भासा मावड़ी, परथमी पर पिछांण।
सींवू मणियां सबद रा, अंतस अर अभिमांण।।
मायड़ मोती पोवतां, नित रो बढ़तो नेह।
सागर ऊंडौ ग्यांन रो, सबदां झरतौ मेह।।
मुरधर रो म्हूं मानवी, मांडू अपणी भास।
मिळसी अेक’र मानतां, अंतस राखूं आस।।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया..✍🏼