अपने पराए
शीर्षक – अपने पराए
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सच तो कहने की आदत हैं।
सपने और अपने नदारद हैं।
आजकल सपने झूठे होते हैं।
न अपने न सपने अब आते हैं।
पराए कुछ समय बाद बदलते हैं
अपने स्वार्थ और फरेब रखते हैं।
हां सच न अपने न सपने आते हैं।
पराएं तो अवसर देख बदलते हैं।
सच तो बस अपने कर्म कहते हैं।
बस हम सभी अपने पराए होते हैं।
इतिहास गवाह न अपने न पराएं है।
महाभारत रामायण हमें बताती हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र