शीर्षक :कइसन बसंत बहार

शीर्षक :कइसन बसंत बहार
ई बसंत बयार कइसन,
चलइत हे ई तो हाही।
रुख बिरीख डोल रहल हे,
बंडोबा मारे ढाही।।
ले डुबतो ई गेहुम के,
दलीहन के फूल झरतो।
हे बरबादी पइदा के,
किसाने पर बजड़ पड़तो।।
जइते माघ कड़र रौदा,
उसट लगे ई अब दिनमा।
एसो ठंडा नहिये पड़ल,
नै भींजल चार महिनमा।।
सुखतो ताल तलैया अब,
पनिया नीचे चल जइतो।
चुअत नै जरीक अगरी त ,
बुझs गरमी बड़ सतइतो।।
नरेन्द्र सिंह
13.02.2025