**मौत का इन्किशाफ़**
ज़ीस्त की तहरीर में आख़िरी सतर का राज़,
हयात के वरक़ पर लहू की इक आवाज़।
रहगुज़र-ए-वजूद में ख़ामोशियों का हुजूम,
मंज़र-ए-फ़ना पर बिखरा तक़दीर का नूर।
साए भी सिमटते हैं लम्हात की आहट पर,
रूह की रवानी में दरवेशी का असर।
क़ब्र के तहख़ाने में गुम होती सदाएँ,
मौत का इन्किशाफ़ है, या हक़ की बलाएँ?