अस्तित्व की जुस्तजू
रहगुज़र-ए-फ़िक्र में आवारगी का साया,
इमकानात के विराने में हक़ीक़त भरमाया।
सदअहद की गर्दिश में अक्स़ ग़ायब सा क्यूँ,
लफ़्ज़ों की तिलिस्मी सिफ़र, मौन का अज़ाब क्यूँ?
नफ़्स-ओ-हयात की तामीर या फ़ना की तहरीर,
मशीयत के पर्दे में महज़ एक ताबीर।
रूह की बसर में हिज्राँ का एहसास सख़्त,
मक़ाम-ए-वजूद पर क्यूँ तारीक़ी का दस्त?