वो एक दोस्त
वो एक दोस्त
जो बेवजह ही मिल गई
ज़िंदगी के उस पड़ाव में
जहां लगता था जैसे
सब कुछ खत्म सा हो गया
वक्त ने जैसे बंजर सा कर दिया था मुझे
उसने उस लम्हे में
मुझे फिर से मुस्कुराना सीखा दिया
वो एक दोस्त
जिससे दोस्ती बेवजह सी थी
कॉलेज के आखरी दिनो में
जब लगा की शायद फिर उसे देखना भी मुमकिन न हो
अपने मन के उधेड़पन में उलझा हुआ
आख़िर कह ही दिया
मेरी दोस्त बनोगी
ये जानते हुए भी की
कोई लड़का किसी लड़की का दोस्त नहीं हो सकता
सीमाओं को लांघे बिना
दोस्ती और प्रेम के बीच लक्ष्मण रेखा खींच कर
शुरआत हुई हमारी दोस्ती की
जो दुनिया की नजरों में कुछ भी हो
पर हम दोनो के लिए
ये मंदिर की घंटियां
और मस्जिद की अजान सी थी
वो एक दोस्त
जो बेवजह ही मिल गई थी
और फिर वक्त के थपेड़ों में कहीं बह सी गई
पर उसके होने का एहसास
मुझे अब भी जीवंत बनाता है…. अभिषेक राजहंस