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26 Jan 2025 · 1 min read

बात कोई ऐसी भी कह दो ।

बात कोई ऐसी भी कह दो ।
होठों तक जो आ ना पाए।।

मन, मन से फिर ऐसा उलझे।
मन व्याकुल होकर चिल्लाए।।

कोई अकेला रहे जगत में।
कोई महफिल नित्य सजाए। ।

बुझे दियों को रोशन कर दे।
कोई वो तदवीर बताए।।

सपनों में मंजिल दिखती हो।
‘ सरल’ राह से क्यों घबराए??

✍️कवि दीपक बवेजा सरल

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