प्रेम के पृष्ठभूमि पर द्वेष के अंकुर नहीं फूटते
प्रेम के पृष्ठभूमि पर कभी भी द्वेष के अंकुर नहीं फूटते, जहाँ सच्चा स्नेह है, वहाँ नफरत का वास असंभव है।
जिस हृदय ने कभी प्रेम का अनुभव किया हो, वह भली-भाँति जानता है कि प्रियजन से घृणा करना प्रकृति के विपरीत है। यह उसी प्रकार है जैसे सूर्य के प्रकाश में अंधकार का अस्तित्व मिट जाता है।
कल्पना कीजिए, आप गहन पीड़ा से व्यथित हैं, और उस वेदना का कारण कहीं न कहीं आपका प्रियतम है। क्षण भर के लिए क्रोध की एक धुंध आपके मन को घेर लेती है। परन्तु, तभी एक चीत्कार उठता है, आपके प्रेमी को चोट लग जाती है। उस पल, आपकी अपनी पीड़ा विलीन हो जाती है, जैसे ओस की बूँद सूर्य की किरणों में खो जाती है।
आपके अंतर्मन से एक तीव्र व्याकुलता उठती है, आप उसकी सुरक्षा और कुशलक्षेम के लिए तड़प उठते हैं। नाराजगी के बादल छँट जाते हैं, और उनकी चिंता की निर्मल भावना प्रबल हो उठती है। आप दौड़ पड़ते हैं, व्याकुल, केवल उनकी ओर, उनकी देखभाल करने के लिए। यही तो प्रेम का अनुपम स्वभाव है।
यह प्रेम की ही शक्ति है, जो हमें दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा के समान अनुभव कराती है। यह वह अदृश्य डोर है, जो हमें उनकी सहायता के लिए प्रेरित करती है। प्रेम ही तो वह दिव्य प्रेरणा है, जो हमें दूसरों के लिए जीने का अर्थ सिखाती है, और उनकी प्रसन्नता में अपनी सच्ची खुशी खोजने का मार्ग प्रशस्त करती है। यह निस्वार्थ भावना ही जीवन को मधुर और सार्थक बनाती है।
-लक्ष्मी सिंह