साड़ी मेरा परिधान
साड़ी केवल पहनने का परिधान ही नहीं
भारतीय नारी की अभिव्यक्ति है,
भारतीय पहचान और पुरातन संस्कृति है,
कौन है बिटिया जिसने बचपन में मां साड़ी नहीं पहनी होगी
मां की जैसी दिखूंगी मैं भी यह तमन्ना उसको भी होगी,
मैं भी उनमें से एक हसरतें सब बेटियों की यही होगी।
नारी बिच साड़ी जूड़ा-चोटी कसी कामिनी दिखती है
चाल-ढाल सीरत मन सुंदर सूरत उससे लगती है
परम्परागत पहन कर साड़ी नारीत्व में खिलती है,
गजब भर लम्बी साड़ी भले ही लम्बी दिखती है
वस्त्र अनेक है पर साड़ी सबसे यूनिक ही लगती है,
अनेक तरीके से पहनने वाली साड़ी अच्छी लगती है।
स्त्री की लाजोलज्जा साड़ी कहलाती है,
स्त्री गम समेट आंचल में दुख सब सह लेती है,
स्त्री लहराकर आंचल साड़ी का खुशियां बिखेर देती है।
कर्मठ त्याग की मूर्ति नारी पहन कर साड़ी
पल्लू कमर में ठूंस साड़ी का पूर्ण करें जिम्मेदारी,
सरपट भागें दिनभर जरुरत करती पूरी सबकी सारी।
सौम्य सहज सभ्यता संस्कृति और खान-पान
साडी़ पहनना है स्त्री एक गरिमापूर्ण का गान
व्यक्तित्व की स्वामिनी साड़ी से बढ़ जाती शान।
रख कर आंचल सिर पर बहू,पत्नी,मां को गौरव मिलता है
आंचल में स्नेहमयी मां का वात्सल्य झलकता है
नारी और साड़ी का अदभुत सामंजस्य सबको दिखता है।
अन्नपूर्णा सी नारी पोंछती पसीना साड़ी से स्वयं का
सबका पेट भर देती है रहता नहीं खुद चाहे खुद मनका
साड़ी के पहने नारी मसाले संग महके रोम-रोम तन का।
लगाव इतना कि साड़ी के प्रति मेरा भी प्रेम बरसता,
वर्ष के हर एक दिन साड़ी ही पहनने का मन करता,
श्रृंगार,त्यौहार परम्परागत साड़ी में मुझे अप्सरा ही लगता।
-सीमा गुप्ता