निर्वंश का दाग
दिल से अब निकल रही है आह
केवल संतान की मन में है चाह
दवा दारू भी न जब आया काम
तब पत्नी संग घुम आया चारों धाम
देखा जब से पत्नी के पाॅंव हैं भारी
दुनिया तबसे लगने लगी है न्यारी
नहीं ढ़लेगी अब जीवन की साॅंझ
पत्नी नहीं अब कहलाएगी बाॅंझ
अब सब कुछ लगने लगेगी प्यारी
जब मेरे ऑंगन में गूंजेगी किलकारी
पाकर आशीर्वाद का फल संतान
खुशी से भूल जाऊॅंगा सकल जहान
बच्चा धीरे-धीरे अपना बड़ा होगा
तब उम्मीद का सपना खड़ा होगा
दुर्भाग्य का काला बादल छंट जाएगा
और निर्वंश का दाग भी हट जाएगा