उड़ी रे उड़ी, देखो तुम यह पतंग
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उड़ी रे उड़ी, देखो तुम यह पतंग।
यह होकर जी.आज़ाद, हवा के सँग-सँग।।
उड़ी रे उड़ी, देखो———————।।
ना कोई इसकी जाति है, ना कोई इसका धर्म।
ना कोई इसको अहम, ना कोई इसको वहम।।
सबको यह प्यारी, इसके कितने है रंग।
उड़ी रे उड़ी, देखो——————-।।
हवा में इठलाती, कैसी अदा यह दिखाये।
बूढ़े- जवान, बच्चों को दीवाना यह बनाये।।
देखो खुशियां बाँटने का, तुम इसका ढंग।
उड़ी रे उड़ी, देखो——————–।।
आजादी और विकास की, यह प्रतीक है।
पथ पे हमेशा बढ़ने की, यह देती सीख है।।
मुसीबतों से लड़ती हुई, यह अपनी जंग।
उड़ी रे उड़ी, देखो——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)