शीर्षक – बेरोजगार

शीर्षक – बेरोजगार
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हम पढ़े लिखे बेरोजगार हैं।
सच तो शायद रोजगार हैं।
बस काम के घंटे से बेरोजगार हैं।
जिंदगी जीना भी जरूरी होती हैं।
समय सुबह ९ बजे से रात ९ बजे है।
रोजगार से तो हम बेरोजगार हुए हैं।
चंद रुपयों के लिए खरीदें गुलाम है।
न सम्मान न कोई स्वास्थ्य नाम हैं।
सरकार की नौकरी सब तलबगार है।
नियम बदले सरकार तब मिलते हैं।
समय न दफ्तर का न काम का बोझ है।
छूट्टी भरपूर और नौकरी तो सरकारी है।
हां मैं बेरोजगार न बिजनेस को पैसा हैं।
न मध्यम वर्ग की कोई जान पहचान है।
सच तो यही बस सरकार के नियम है।
न समय पाबंदी न कोई तनाव लेते हैं।
सच हम तो बस बेरोजगार अधेड़ हैं।
आशा और विश्वास ईश्वर के साथ हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र