क्योँ लब पे तुम्हारे जुम्बिश है पेशानी पे पसीना आया है ।
क्योँ लब पे तुम्हारे जुम्बिश है पेशानी पे पसीना आया है ।
अब हया की चिलमन रहने दो सावन का महीना आया है ।
अब कैसा शिकवा कैसा गिला मौसम है ये मयखानों का –
आगोश में हमको अब साकी पीने का करीना आया है ।
सुशील सरना