*अटल सत्य*
देखो वह गरीबी!
देखो वह करीबी!
एक जाती नहीं है!
दूसरी आती नही है!!1
एक वह अपना!
दूसरा वह सपना!
एक चला गया है!
दूसरा झलकना!!
एक वह प्यार!
दूसरा वह आधार!
एक सतत् नया!
दूसरा चला गया!!
एक वह भूख!
दूसरा वह रसूख!
पहली जाती नहीं!
दूसरे की जाति नहीं!!
एक वह दर्द!
दूसरा वह मर्द!
पहला जाता नहीं!
दूसरा आता नहीं!!
एक वह ठिठोली
दूसरी वह भोली
पहली नहीं नाता!
दूसरी मैं नहीं भाता!!
एक वह काया!
दूसरी वह छाया!
पहली छोडा हाथ!
दूसरी सदैव साथ!!
एक वह गलती!
दूसरी मचलती!
पहली फलती
दूसरी ढलती!!
एक बूंद हर हाल!
दूसरा समुंद्र विशाल!
पहली पूरी निडर है!
दूसरा निरा खल है!!
जीवन एक रहस्य!
न टीका, न भाष्य!
हल नहीं करना है!
बल्कि होश भरना है!!
……
आचार्य शीलक राम
वैदिक योगशाला
कुरुक्षेत्र