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28 Dec 2024 · 1 min read

जीना बना मरना

शून्य में झांकती आंखें!
पैर उलझे हुये सलाखें!!
आगे अनंत,पीछे बंधन!
कौन समझे क्रूर क्रंदन!!

योजनाएं बहुत अधिक!
चहुंदिशा मौजूद बधिक!!
समय अत्यधिक कम!
चेतना पूरी है,देह बेदम!!

दुख बारीश मूसलाधार!
समस्त विरोधी संसार!!
कर्मयोगी कर्मरत पूरा!
फल पाने में कोरा भूरा!!

हर तरफ बाधाएं खडी!
कर्म करते श्वास उखडी!!
सफलता बस धींगामस्ती!
जिंदगी कर्कट से सस्ती!!

हकीकत,सपनों में जंग!
बाकी फिर भी उमंग!!
दोनों से धोखे ही मिले हैं!
बहुत लंबे ये सिलसिले हैं!!

न यहाँ के हैं, न वहाँ के!
हारे हुये है दोनों जहाँ के!!
फिर भी मानी नहीं हार!
सहज पूर्ववत् व्यवहार!!

आंखें बूढी, नजरें ताजा!
श्यात् खुले कोई दरवाजा!!
छोडा नहीं कर्म को करना!
बेशक जीना बना मरना!!
…..
आचार्य शीलक राम
वैदिक योगशाला
कुरुक्षेत्र

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