तबाही की दहलीज पर खड़े हैं, मत पूछो ये मंजर क्या है
तबाही की दहलीज पर खड़े हैं, मत पूछो ये मंजर क्या है
दिल के जख्मों का हाल सुनोगे, तो जानोगे ये असर क्या है।
बाहर से जरूर ठीक नजर आते हैं, सच पूछो मेरे अंदर क्या है
टूटे अरमानों की राख में दबी, उम्मीदों का मंजर क्या है।
निकलते नहीं बूंद भर आंसू भी, मेरी आंखों से ज्यादा बंजर क्या है
सूखे हुए इन सपनों की जमीन, कह दो इससे बेहतर क्या है।
टूटे हुए सपनों का दर्द इतना गहरा है, मत नापो ये समंदर क्या है
हर लहर में एक चीख दबी है, सोचो इस दिल का मंजर क्या है।
हर सांस बोझिल, हर ख्वाब अधूरा, जीने का बहाना ढूंढते हैं
जख्मों के इस शहर में, अब और सहारा क्या है।
तबाही की दहलीज पर खड़े हैं, मत पूछो ये मंजर क्या है
जो देखा नहीं, वो समझोगे कैसे, दिल के अंदर क्या है।