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23 Dec 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल
उनसे मिली निगाह तो दुनिया ये जल गयी
कुछ यूँ जले कि उनकी तो मैय्यत निकल गयी

साक़ी तुम्हारे रुख़ से ये ढलका नकाब जो
शादी शुदा थे उनकी भी नीयत फिसल गयी

क्या क्या गिनाऊँ हादसे इक हुस्न के लिए
लाठी चली कहीं पे तो बंदूक चल गयी

चमड़ी के तुम दलाल हो मैंने जो कह दिया
उनको बस एक बात मेरी ये ही खल गयी

अनपढ़ सदन में मुर्ग मुसल्लम हैं काटते
कितनों की डिग्री पेट की आतिश में जल गयी

पहलू में उसको गैर के देखा तो यूँ लगा
किस्मत हमारी मुट्ठी में आकर फिसल गयी

प्रीतम हयात जिसको समझता था अब तलक
वो तो थी इक बला जो मेरे सर से टल गयी

प्रीतम श्रावस्तवी

Language: Hindi
28 Views

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