मेरे कान्हा
सच कहूं
छवि आजतक देखी नहीं,
नहीं कोई सूरत ।
वैसे भी मुझे सिर्फ प्यार की है जरूरत।
आकांक्षी अर्जुन की भक्ति भर दो भगवन।
या सौगात सुभद्रे बनने का दे दो
प्रकृति- पुरुष की क्या माया,
जब है ये तेरी ही काया।
अब तो घुटन सी होती है।
चेतन में भी रूधन सी होती है।
विचित्र संयोग है।
अपना तो (भक्त- भगवान) वियोग हैं।
– डॉ.सीमा कुमारी 27-12-024की स्वरचित रचना है मेरी जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।