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10 Dec 2024 · 1 min read

मंदोदरी सोच में डूबी ,दुखी बहुत है उसका मन

मंदोदरी सोच में डूबी ,दुखी बहुत है उसका मन
रानी होकर भी क्यों मुझको ,मिला अभागिन सा जीवन

प्रिया दशानन की बन मैंने , सुख वैभव कितना पाया
लेकिन खेल समय का देखो, काम नहीं कुछ भी आया
बिन पतझड़ के बसा बसाया, उजड़ गया मेरा उपवन
मंदोदरी सोच में डूबी दुखी बहुत है उसका मन

ज्ञानवान शिवभक्त जगत में , हुआ न इन जैसा कोई
मगर इन्हें समझा पाता जो, हुआ नहीं ऐसा कोई
अहंकार ने ही कर डाला, मेरे पति का मति भंजन
मंदोदरी सोच में डूबी, दुखी बहुत है उसका मन

लिया बहन का कैसा बदला,काल स्वयं का ले आये
छद्म भेष धरकर भिक्षुक का, पर नारी को हर लाये
भाई बंधु सुत सबको खोया,जो सब थे दिल की धड़कन
मंदोदरी सोच में डूबी, दुखी बहुत है उसका मन

किया नाश खुद अपने कुल का,नाम तलक मिट जाएगा
लगा कलंक भाल पर ऐसा आखिर क्या मिट पाएगा
बात कभी कब मेरी मानी, मर्यादा का किया हनन
मंदोदरी सोच में डूबी, दुखी बहुत है उसका मन

डॉ अर्चना गुप्ता
10.12.2024

1 Like · 130 Views
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